बहू या मकान
सासू मां अपने मकान से कहिए कि आपको रोटी बनाकर खिला दें
चंचल रसोई में लगी हुई है। जितनी तेजी से वो काम कर सकती थी वो कर रही है। लेकिन दिमाग में दस बातें घूम रही हैं। जब से मायके से भाई का फोन आया है, बस तब से चंचल का मन घर के कामों में लग नहीं रहा। पर फिर भी, फटाफट काम निपटाने में लगी है। क्या पता अम्मा जी को उस पर तरस आ जाए और वो उसे उसके मायके जाने दे।
पति रघु से भी उम्मीद की थी कि वो अम्मा जी से बात करें। पर अम्मा जी के आगे उनकी चलती कहाँ है? अम्मा जी के आगे चलती किसी की भी नहीं है। जब उनके पति की ही नहीं चली तो बेटा तो दूर की बात है। पहले ससुर जी भी कँपकपाते थे। अब उनके सिधारने के बाद बेटे की क्या बिसात?
अम्मा जी में ना तब बदलाव आया था, ना अब बदलाव आया है। अब तो वो पहले से और ज्यादा मुखर हो चुकी हैं। जो मुंह पर आता है वो बोलती हैं। चाहें सामने वाले को बुरा लगे उससे उन्हें कोई लेना देना नहीं।
अम्मा जी इस घर की मुखिया, नहीं नहीं इस मकान की मुखिया हैं क्योंकि उन्हें अपने घर से ज्यादा अपने मकान से लगाव है। वो क्या है ना कि घर तो सदस्यों से बनता है, पर अम्मा जी को सदस्यों से लगाव नहीं। उन्हें तो अपने इस ईट गारे के दो कमरे के मकान से लेना देना है। ले देकर घर में चार जीव हैं अम्मा जी, बेटा रघु, उसकी पत्नी चंचल और एक पोता मनु जो अभी सिर्फ पाँच साल का है। बेटा बहू उनकी सेवा में कोई कमी नहीं छोड़ते लेकिन उसके बावजूद वो ताने देने में कोई कसर नहीं छोड़ती। उन्हें लगता है कि ये लोग उनकी सेवा भी सिर्फ मकान के लिए कर रहे हैं। अगर कोई उनके मुंह पर तारीफ कर दे कि आपके बेटे बहुत बड़े अच्छे हैं जो इतनी सेवा करते हैं। तो अम्मा जी मुँह पर जवाब देती हैं, " अरे मेरी सेवा तो मेरा मकान करता है। वरना आजकल कौन सा बेटा बहु सेवा करते हैं"
चंचल और रघु दोनों का ही सुनकर दिमाग खराब हो जाता लेकिन फिर सोचते की माँ ही तो है भला मां से कैसी नाराजगी। लेकिन आज सुबह चंचल के छोटे भाई का फोन आया कि उसकी मां की तबीयत अचानक खराब हो गई है। मां अभी हॉस्पिटल में है और चंचल को ही याद कर रही है। रघु ने जब दोबारा फोन करके पूछा, तो चंचल के पापा ने कहा, " अभी स्थिति नियंत्रण में है। पर फिर भी आप चंचल को भेज दीजिए। कुछ दिन रुक कर वो थोड़ा अपनी मां को संभाल लेगी"
रघु ने फटाफट जाकर अम्मा जी से पूछा, " अम्मा चंचल की मां की तबीयत खराब है। वो हॉस्पिटल में है। तो मैं चंचल को उसके मायके छोड़ आता हूं" उसकी बात सुनकर अम्मा जी ने एक बार तो रघु को ऊपर से नीचे तक घूरा, फिर कहा, "पूछ रहा है या बता रहा है?" उनकी बात सुनते ही रघु सकपका गया। फिर खुद को संभालते हुए बोला, " अम्मा पूछ रहा हूं। आप कहे तो मैं चंचल को उसके मायके छोड़ आऊं। अब उसकी मां की तबीयत खराब है तो घर में एक औरत का होना जरूरी है और आप तो जानते हो उसका भाई तो अभी छोटा है। उसकी शादी भी नहीं हुई ऐसे में चंचल सब कुछ संभाल लेगी" "अच्छा और अपने घर का क्या? यहां काम करने के लिए कौन से नौकर चाकर लगे हैं? बताएगा मुझे" अम्मा अभी भी रघु को घूरते हुए अपनी बात कहे जा रही थी। " पर अम्मा ऐसे में चंचल का वहाँ होना जरूरी है ना" रघु ने फिर एक बार कोशिश की।
" हां तो उसकी मां के लिए मैं नौकरानी बन जाऊं। कोई जरूरत नहीं है जाने की। उससे कहो घर का काम करें। घर संभालेगी ये। खुद का तो घर नहीं संभल रहा है इनसे, मायके का घर संभालेगी" उसके आगे रघु कुछ कह ही नहीं पाया और चंचल चुपचाप रसोई में अपने काम में लग गई। थोड़ी देर बाद देखा तो पड़ोस वाली जमुना काकी अम्मा जी से मिलने के लिए आई और आकर अम्मा के पास सोफे पर बिराज गईं,
" और भौजी जी क्या हो रहा है? आजकल तो नजर ही नहीं आती हो। लगता है बहु से बहुत सेवा करवा रही हो" " अरे काहें की सेवा? आजकल की कामचोर बहुओं से कोई सेवा होती है क्या? बस मायके जाने के लिए ना कह दो तो मुंह सूज जाता है." " अरे क्या हो गया? चंचल तो ऐसे हैं नहीं भौजी। वह तो आपकी बड़ी सेवा करें है. " " वो क्या मेरी सेवा करेगी? मेरी सेवा तो मेरा ये मकान करता है। इसी के लालच में करती है सबकुछ। वरना आज निकाल बाहर करें मुझे" अम्मा जी ने तुनकते हुए कहा। ये बात अंदर चंचल को भी सुनाई दे रही थी। एक तो पहले से ही उसका दिमाग खराब हो रखा था, ऊपर से अम्मा जी की बात ने आग में घी का काम किया। चंचल सीधे अपने कमरे में गई और जाकर सामान पैक करने लगी। थोड़ी देर बाद जब जमुना काकी अपने घर चली गई तो चंचल अपने सामान के साथ बाहर आई। उसे देखते ही अम्मा जी उसे डाँटते हुए बोलीं, " कहां जा रही है तू? अभी सुबह तो मना किया था तुझे" " अम्मा जी मैं अपनी मां के पास जा रही हूं अपने मायके। मेरी मां को मेरे पापा मेरी जरूरत है" " मायके जाने से पहले याद रख तू इस घर की बहू है। इस घर का काम कौन करेगा? रोटी कौन तैयार करेगा?" चंचल अम्मा जी की तरफ मुड़कर मुस्कुराई और बोली, " अम्मा जी अपने मकान से कहिए रोटी बनाकर दे दे। वैसे भी आप की सेवा हम नहीं ये मकान करता है तो अपने सारे काम इसी से करवा लीजिए"
अम्मा जी ने गुस्से से रघु की तरफ देखा तो रघु ने चंचल की तरफ देखा। रघु के कुछ कहने से पहले ही चंचल ने कहा, " माफ करना लेकिन मैं सिर्फ आपकी पत्नी ही नहीं, किसी की बेटी भी हूँ "
आखिर रघु कुछ ना कह पाया और चंचल अपने बेटे मनु के साथ मायके के लिए रवाना हो गयी। अम्मा जी गुस्से से रघु को बोली, " तू रोक नहीं सकता अपनी पत्नी को? कैसे जवाब देकर चली गई। यही सिखाया है उसके मां बाप ने"
" माफ करना अम्मा, ये उसके मां-बाप ने नहीं सिखाया ये तुमने सिखाया है। और वैसे भी कुछ गलत नहीं कहा उसने। तुम ही तो कहती थी कि तुम्हारा मकान तुम्हारी सेवा करता है। तो अब करवा लो अपने मकान से सेवा। अगर यही सब चलता रहा तो मुझे भी अपने परिवार के लिए कुछ सोचना पड़ेगा"
कह कर रघु चुपचाप अपने कमरे में चला गया। पीछे अम्मा जी हाथ मलती रह गईं। अज्ञात
RISHITA
27-Aug-2023 01:27 AM
nice part
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Aliya khan
26-Aug-2023 01:49 AM
अच्छी कहानी है
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